Sunday, July 7, 2013

गुलेरी जयंती पर विशेष

(साहित्य के पुरोधा पंडित चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की आज 130वीं जयंती है। गुलेरी जी की रचनाओं के बारे में इतना सब लिखा, पढ़ा व सुना जा चुका है कि कुछ और कहना सूरज को दीया दिखाने समान है। दो साल पहले पैतृक घर गुलेर जाना हुआ तो मैं गुलेरी जी की निजी डायरी अपने साथ मुंबई ले आई थी। यह वह डायरी है जिसे गुलेरी जी के पौत्र यानी मेरे पिता डॉ. विद्याधर शर्मा गुलेरी अपनी सबसे बड़ी संपत्ति मानते थे। परदादा जी की डायरी पढ़ते हुए उन्हें व्यक्तिगत तौर पर जानने का सौभाग्य मुझे मिला, वहीं उनके अपने शब्दों में उनका परिचय पाकर मैं अभिभूत हो उठी। इसे हिन्दी-साहित्य का दुर्भाग्य माना जाना चाहिए कि पाठकवर्ग गुलेरी जी की उन अधिकांश रचनाओं से वंचित रहा है, जो वे 39 वर्ष की अल्पायु में लिखकर चले गए। प्रतिभापुत्र गुलेरी जी मुख्यतया उसने कहा था कहानी से साहित्य-प्रेमियों में अपनी पहचान रखते हैं, लेकिन कहानी लेखन के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में भी उनका योगदान अप्रतिम है। भाषा एवं साहित्य से इतर दर्शन, इतिहास, पुरातत्व, धर्म, ज्योतिष, पत्रकारिता व मनोविज्ञान जैसे अनेक विषयों पर गुलेरी जी की गहरी पैठ थी। गुलेरी जी के रचनाकर्म को पाठक अच्छे से जान पाएं, इस कामना के साथ उनका यह लेख, जो मूल अंग्रेजी से अनूदित है।)
गुलेरी जी अपने शब्दों में
मैं पंजाब प्रांत के काँगड़ा जिले में गुलेर नामक ग्राम निवासी सारस्वत ब्राह्मणों के सम्मान्य कुल का वंशज हूँ। ज्योतिष के विद्वान और पंचांग विद्या के कर्ता के रूप में मेरे प्रपितामह की प्रसिद्धि उन दिनों में पटियाला और बनारस तक फैली हुई थी। हमारे वंश के लोग माफी और जागीर की भूमि का उपभोग करते हैं और हम इतिहास-प्रसिद्ध गुलेर के राजा कटोच क्षत्रियों के मुख्य पुरोहित और गुरु हैं। गुलेर के राजा ने मेरे पिताजी को गुरु के रूप में पालकी, गद्दी और ताजीम का सम्मान प्रदान किया था और उनके बाद मुझे भी वही प्रतिष्ठा प्राप्त है।
मेरे पिता पंडित शिवरामजी, अपने समय में बनारस के विशिष्ट संस्कृत विद्वान माने जाते थे और जयपुर के स्वर्गीय महाराजा रामसिंह जी बहादुर ने अपने दरबार के राजपंडित पद के लिए उनका चयन किया था। वे जयपुर दरबार के वरिष्ठ पंडित थे और लगभग 48 वर्ष तक जयपुर के संस्कृत कॉलेज में उपाध्यक्ष एवं संस्कृत, व्याकरण, भाषा विज्ञान और वेदान्त, दर्शन के आचार्य पर प्रतिष्ठित रहे। स्वर्गीय एवं वर्तमान महाराजा तथा समाज के सभी वर्गों के लोगों से प्रखर पाण्डित्य तथा निर्मल चरित्र के कारण उनको महान समादर प्राप्त था। वे जयपुर में संस्कृत अध्ययन के आद्य प्रवर्तकों में थे और उनकी शिष्य मण्डली में देश के बहुत से प्रसिद्ध पंडित हैं तथा तीन को तो भारत सरकार द्वारा महामहोपाध्याय का सम्मान भी प्राप्त हो चुका है।
मेरा जन्म जयपुर में ही हुआ और मैंने महाराज कॉलेज में शिक्षा पाई। स्कूल व कॉलेज की सभी कक्षाओं में मैं सर्वोच्च स्थान एवं पारितोषिक पाता रहा। मैंने माध्यमिक परीक्षा 1897 ई. में द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की। सन् 1899 ई. में मैंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एण्ट्रेन्स परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और विश्वविद्यालय की इस परीक्षा के वरिष्ठता क्रम में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। जयपुर राज्य में शिक्षा के इतिहास में यह एक अभूतपूर्व अवसर था। अत: महाराजा साहिब बहादुर की ओर से सार्वजनिक शिक्षा विभाग द्वारा मुझे स्वर्ण पदक प्रदान किया गया। साथ ही, मैंने उसी वर्ष कलकत्ता विश्वविद्यालय से मैट्रिक परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। 1901 ई. में मैं कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रथम वर्ष कला परीक्षा में द्वितीय श्रेणी प्राप्त करके उत्तीर्ण हुआ। इस परीक्षा में अंग्रेजी के अतिरिक्त मेरे विषय तुर्क, ग्रीक और रोमन इतिहास, भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, संस्कृत और सामान्य एवं उच्चतर गणित रहे थे। इसके साथ ही मैंने हिन्दी में मौलिक रचना प्रस्तुत करके वैकल्पिक परीक्षा में सफलता प्राप्त की। मेरे एक आचार्य द्वारा मेरे नाम लिखे गये पत्र के उद्धरण से ज्ञात होगा कि मैंने कलकत्ता के सभी परीक्षार्थियों में अंग्रेजी गद्य-लेखन में द्वितीय स्थान प्राप्त किया था।
विद्यार्थी अवस्था में ही स्वर्गीय कर्नल स्विन्टन जैकब और कैप्टन ए.एफ. गैरट आर.ई.एम. ने मुझे जयपुरस्थ ज्योतिष यंत्रालय के यंत्रोद्धार के निमित्त सहायक के रूप में चुन लिया था। कठिन एवं मौलिक कार्य में मैंने जो सहायता की, उसमें मेरी सफलता को प्रमाणित करते हुए राज्य की ओर से मुझे 200 रु. का पारितोषिक प्रदान किया गया। इसके लिए ऊपरिलिखित दोनों महानुभावों ने जो संलग्न प्रमाणपत्र प्रदान किए हैं, वे साक्षीभूत हैं।
अंग्रेजी, मानसिक एवं नैतिक विज्ञान और संस्कृत विषय लेकर मैंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1903 ई. में बी.ए. परीक्षा पास की और विश्वविद्यालय के सफल परीक्षार्थियों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया। जयपुर के महाराजा कॉलेज अथवा राजपूताना के किसी भी कॉलेज से कोई भी परीक्षार्थी अब तक ऐसी सफलता प्राप्त नहीं कर सका था। अत: इन शिक्षालयों के इतिहास में यह एक अभूतपूर्व घटना थी। राज्य की ओर से मुझे पुन: स्वर्णपदक और 300 रु. के मूल्य की पुस्तकें प्रदान करके पुरस्कृत किया गया। उस वर्ष का सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी होने के नाते मैंने नॉर्थ ब्रुक स्वर्णपदक भी प्राप्त किया।
मनोविज्ञान एवं कर्तव्यशास्त्र विषय लेकर मैंने एम.ए. उपाधि के लिए परीक्षा के निमित्त आवश्यकता से भी अधिक अध्ययन किया परन्तु स्वास्थ्य की गड़बड़ी ने मुझे परीक्षा में बैठने का अवसर नहीं दिया।
संस्कृत के विश्रुत विद्वान अपने पिताजी से कई वर्षों तक स्वतंत्र रूप से अध्ययन करने का असाधारण सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ था। मैं संस्कृत बहुत अच्छी तरह जानता हूँ और उच्चतर एवं मौलिक शोध को लक्ष्य में रखकर मैंने वैदिक, पौराणिक, साहित्यिक एवं वेदान्तक विषयक संस्कृत साहित्य के अंगों का विशिष्ट अध्ययन किया है। मैंने संस्कृत का आरम्भिक अध्ययन प्राचीन पद्धति से किया जो बहुत ठोस होता है। अंग्रेजी शिक्षा ने मुझे वह कसौटी प्रदान कर दी है जिसका कि पाश्चात्य विद्वान प्राचीन भाषा में संशोधन के उद्देश्य के लिए प्रयोग करते हैं।
मैंने इण्डियन एन्टीक्वेरी एवं अन्य संस्कृत और हिन्दी सावधिक पत्र-पत्रिकाओं को बहुत से विद्वतापूर्ण लेखों द्वारा योगदान दिया है। इण्डियन एन्टीक्वेरी में प्रकाशित मेरे लेखों की विशिष्ट प्राच्य विद्याविदों ने प्रशंसा की है। जब महामहिम ब्रिटिश सम्राट भारत आये तो मैंने उनके लिए संस्कृत में स्वागत गान की रचना की। सुप्रसिद्ध डच विद्वान डॉ. कैलेण्ड (उद्वेच निवासी) ने एतन्निमित्त मेरी बहुत प्रशंसा की। मैंने कतिपय आद्यावधि अप्रकाशित संस्कृत ग्रन्थों की समीक्षा एवं व्याख्यात्मक प्रस्तावना और टिप्पणियों सहित सम्पादन कार्य भी हाथ में लिया है। जयपुर राज्य द्वारा संचालित संस्कृतोपाधि की परीक्षाओं में मैं साहित्य, धर्मशास्त्र और व्याकरण विषयों का परीक्षक होता हूँ तथा राजपूताना मिडिल स्कूल और जयपुर मिडिल स्कूल परीक्षाओं में भी मुझे परीक्षक नियुक्त किया जाता है।
सन् 1904 ई. में कर्नल टी.सी. पियर्स, आई.ए. तत्कालीन रेजीडेन्ट जयपुर की सहमति से मुझे खेतड़ी के अल्पव्यस्क राजा का अभिभावक, अध्यापक नियुक्त किया गया। पियर्स साहब का कश्मीर से लिखा हुआ प्रशंसा-पत्र इस बात का प्रमाण प्रस्तुत करता है कि मेरी कार्यप्रणाली के विषय में उनके मन में कैसी धारणा थी। जब जयपुर दरबार ने मेयो कॉलेज अजमेर के मोतमिद् (रियासत के सामन्तों और प्रशिक्षणार्थियों के अभिभावक) पद का स्तर ऊँचा करने का निर्णय किया तो 1907 ई. में इस पद के लिए मुझे चुना गया। यह चुनाव करते समय रियासत की स्टेट कौंसिल के सचिव ने रेजीडेन्ट जयपुर के नाम यह पत्र लिखा था-
संख्या 2254
जयपुर, दिनांक 21 अक्टूबर, 1916
मेयो कॉलेज के मोतमिद् पद पर किसी अधिक योग्य व्यक्ति की नियुक्ति करके उसका स्तर बढ़ाने का प्रश्न कुछ समय से जयपुर दरबार के विचाराधीन है। अब कौंसिल ने राजा जी खेतड़ी के शिक्षक पं. चन्द्रधर गुलेरी बी.ए. को लाला मिट्ठन लाल के स्थान पर मेयो कॉलेज के मोतमिद् पद को ग्रहण करने के लिए चुना है। पं. चन्द्रधर गुलेरी एक बहुत ही योग्य व्यक्ति हैं और उन्होंने अपने कर्तव्यों का सम्यक पालन करते हुए प्रिंसिपल मेयो कॉलेज को सदैव सन्तुष्ट किया है और अब तक इस संस्था का बहुत कुछ अनुभव प्राप्त कर लिया है, अत: कौंसिल को विश्वास है कि इनकी नियुक्त के विषय में प्रिंसिपल मेयो कॉलेज, अजमेर की सहमति प्राप्त हो जायेगी।
मेयो कॉलेज में लगभग 15 वर्ष बहुत लंबे समय तक में विविध श्रेणियों को अवैतनिक रूप से विभिन्न विषय पढ़ाता रहा हूँ। तदन्तर सन् 1916 में मुझे महामहोपाध्याय पंडित शिवनारायण के स्थान पर हैड पंडित मेयो कॉलेज के पद पर नियुक्ति के लिए चुना गया और हिन्दी व संस्कृत का अध्यापन कार्य मुझे सौंपा गया। कक्षा में, छात्रावास में और क्रीड़ा-क्षेत्र में अपने विद्यार्थियों के मानसिक, नैतिक, बौद्धिक और शारीरिक विकास की दिशा में मैंने जिस परिणाम में और जिस स्तर पर कार्य किया है उसके विषय में प्रिंसिपल महोदय ही अपना मत दे सकते हैं कि वह उनके मनोनुकूल है या नहीं।
मैंने प्राचीन एवं आधुनिक गद्य तथा पद्यात्मक हिन्दी सहित्य का विशिष्ट अध्ययन किया है और पाली, प्राकृत तथा अपभ्रंश भाषाओं से इसके विकास के संबंध में भी अनुशीलन किया है। इतिहास और पुरातत्व विषयों में मेरी अभिरुचि है और अपने नाम से, बिना नाम के अथवा अन्य विद्वानों के साथ जो लेख आदि प्रकाशित किए हैं, वे सर्वनिवेदित हैं।
मैं हिन्दी का प्रसिद्ध लेखक हूँ और साहित्यिक जगत में आलोचक और विद्वान के रूप में मेरी ख्याति है। नागरी प्रचारिणी सभा काशी की प्रबंधकारिणी परिषद् का मैं कई वर्षों तक सदस्य रहा हूँ। जयपुर के रेजीडेन्ट कर्नल शावर्स द्वारा लिखित नोट्स ऑन जयपुर’ पुस्तक में मेरा यथेष्ट योगदान है। युद्ध काल में मैंने सम्राट की सेनाओं की विजय के सम्बन्ध में एक संस्कृत प्रार्थना लिखी थी जो प्रति दिन विद्यालयों में दोहराई जाती थी। युद्धकाल में प्रिंसिपल मेयो कॉलेज पब्लिसिटी बोर्ड, अजमेर मेरवाड़ा बार गजट में हिन्दी संस्करण के सम्पादन में अकेले ही उनकी सहायता की थी और साथ ही अंग्रेजी संस्करण में भी लेख लिखता था। अजमेर मेरवाड़ा गजट के हिन्दी संस्करण की शैली और साहित्यिक स्तर का अपेक्षाकृत अधिक समादर था।
चन्द्रधर गुलेरी
जुलाई 8, 1917 


(दैनिक जागरण और दिव्य हिमाचल में क्रमश: 7 व 8 जुलाई, 2013 को प्रकाशित)

12 comments:

  1. गुलेरी जी के जीवन के अनछुए पहलुओं से परिचय कराने के लिए आभार...गुलेरी जी की १३०वीं जयन्ती पर विनम्र नमन...

    ReplyDelete
  2. गुलेरी जी के बारे में उनके द्वारा लिखे गए शब्‍दों से जानना अच्‍छा लगा। उनकी १३०वीं जयंती पर शतशत नमन।

    ReplyDelete
  3. आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [08.07.2013]
    चर्चामंच 1300 पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
    सादर
    सरिता भाटिया
    शत शत नमन

    ReplyDelete
  4. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अमर शहीद कैप्टन विक्रम 'शेरशाह' बत्रा को सलाम - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  5. bahut hi achhi jankari mili jo dharohar ke rup me aapke paas thi ............aabhar

    ReplyDelete
  6. आपको अपना ब्लॉग लगातार अपडेट करते रहना चाहिए। इसलिए नहीं कि आप गुलेरी जी की पड़पोती है..बल्कि इसलिए क्योंकि हिंदी के लेखकों के बारे में उनका ही समाज कम जानता है...जो जानता है वो अधूरा जानता है....इसलिए जितना आप ज्यादा अपडे़ करेंगी उतना हमें पता चलेगा..। आगे हम लोगो को बताएंगे।

    ReplyDelete
  7. Guleri ji ki kahanio ki yadon ko taza karti rachna , dhat teri kudmayee ho gyee hai !kuch aisa hi yad aa raha hai

    ReplyDelete
  8. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  9. गुलेरी जी के जीवन से परिचय करवाने का शुक्रिया!

    ReplyDelete
  10. मुझे गर्व है इस बात का कि मैं उस वट वृक्ष का पल्लव हूँ जिसकी जड़ें परम पूज्य गुलेरी जी का कृतित्व हैं.
    उनके बनाये पथ पर अग्रसर हो सकूं,ऐसी मेरी अभिलाषा है...
    माधवी जी को आभार एवं नमन इस पुनीत कार्य के लिए...

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...