(अज्ञेय की कविता 'यात्री' से एक अंश, और
एस एल हलदनकर की 'ग्लो ऑफ होप'.)
मंदिर से, तीर्थ से, यात्रा से
एस एल हलदनकर की 'ग्लो ऑफ होप'.)
मंदिर से, तीर्थ से, यात्रा से
हर पग से, हर सांस से
कुछ मिलेगा, अवश्य मिलेगा
पर उतना ही, जितने का
पर उतना ही, जितने का
तू है अपने भीतर से दानी।
बहुत सुंदर................
ReplyDeletehaldankar is one of my favourites.
regards.
anu
Beautiful!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट कल 19/4/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा - 861:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
bahut sundar...
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