Monday, November 7, 2011

चंद्रमा को गिटार की तरह बजाऊंगा तुम्हारे लिए

(प्रिय कवि चंद्रकांत देवताले की सालगिरह पर 
उनकी एक कविता) 

मेरे होने के
प्रगाढ़ अंधकार को 
कैसे जगमगा देती हो तुम 
अपने होने भर के
करिश्‍मे से

कुछ तो है तुममें
जिससे अपने बियाबान सन्‍नाटे को
तुम सितार की तरह बजा लेती हो
समुद्र की छाती में

अपने असंभव आकाश में तुम
आज़ाद चिडि़या की तरह खेल रही हो
उसकी आवाज़ की परछाई के साथ
जो लगभग गूंगा है
और मैं, यहां-
कविता के बंदरगाह पर खड़ा
आंखें खोल रहा हूं
गहरी धुंध में

लगता है
काल्‍पनिक ख़ुशी का भी
अंत हो चुका है
न जाने कहां, किस पत्‍थर पर
बैठी तुम
फूलों को नोंच रही हो
मैं यहां
दुख की सूखी आंखों पर
पानी के छींटे मार रहा हूं
हमारे बीच
तितलियों का अभेद्य परदा है शायद

जो भी हो
मैं आता रहूंगा उजली रातों में
चंद्रमा को
गिटार की तरह बजाऊंगा
तुम्‍हारे लिए

और वसंत के पूरे समय
वसंत को
रूई की तरह
धुनकता रहूंगा
तुम्‍हारे लिए।

7 comments:

  1. जो भी हो आता रहूँगा उजली रातों में
    चंद्रमा को
    गिटार की तरह बजाऊँगा
    तुमहारे लिए
    वाहा बहुत ही शानदार प्रस्तुति .....

    ReplyDelete
  2. तुम्हारी पसंद पर फ़िदा हूँ. बहुत सुन्दर कविता. देवताले जी को जन्मदिन की शुभकानाएं!

    ReplyDelete
  3. देवताले जी जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं ....
    बहुत सुंदर कोमल भावनाओं की भावाव्यक्ति बधाई

    ReplyDelete
  4. अजीब से बिम्बों की कविता है -रुमान के धरातल पर कौन सी रस निष्पत्ति है समझने का प्रयास कर रहा हूँ :)

    ReplyDelete
  5. शानदार चयन। शुक्रिया......... कृति मलिक

    ReplyDelete
  6. बिम्बात्मक सुन्दर रचना

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...