'सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल, ज़िंदगानी फिर कहां!' घुमक्कड़ी जीवन का मूल-मंत्र। कला में अभिरुचि। इससे इतर विश्व सिनेमा, साहित्य और फ़ोटोग्राफी में मन रमता है। ब्लॉग के ज़रिए हमख़याल लोगों से राब्ता कायम करने की कोशिश है। यह ब्लॉग पूजनीय परदादा पंडित चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी को समर्पित है। लेखन शौक है और कोशिश जारी...
Baat bilkul sachchi hai
ReplyDeletepuraani daayari ki panktiya sajha karne ka aabhar.
विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteकल 07/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुती....
ReplyDeleteखूबसूरत भाव भरी कविता
ReplyDeleteविजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteक्या खूबसूरत और शानदार बात कही गयी है कविता में!!!
ReplyDeleteपूरी कविता मिले तो कृपया पोस्ट करें!