(अशोक वाजपेयी के संग्रह 'उम्मीद का दूसरा नाम से'
एक प्रेम कविता)
एक प्रेम कविता)
मैं उसे पुकारना चाहता हूं
संसार की हज़ारों भाषाओं और बोलियों में
मैं हरेक भाषा में उसके नाम का
अनुवाद करना चाहता हूं
अनुवाद करना चाहता हूं
मैं संसार की तमाम भाषाओं में
प्रेम, प्रतीक्षा, कामना के
प्रेम, प्रतीक्षा, कामना के
पर्याय खोजकर
उनका उच्चारण करना चाहता हूं
उनका उच्चारण करना चाहता हूं
ताकि उससे हज़ारों शब्दों में प्रेम
हज़ारों शब्दों से उसकी प्रतीक्षा
और कामना कर सकूं
हज़ारों शब्दों से उसकी प्रतीक्षा
और कामना कर सकूं
उस अकेली अद्वितीया को
हज़ारों नामों से घेर सकूं।
हज़ारों नामों से घेर सकूं।
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
हर बात के खत्म हो जाने के बाद, हर बात के शुरू होने से पहले कि यही एक अकेली चाह है, इसे दुनिया की हज़ार भाषाओं में पुकार लो और सचमुच हज़ारों नामों से घेर दो। बहुत सुंदर कविता है।
ReplyDeleteवाह.. प्रेम बयां हो तो ऐसे!
ReplyDeleteबहुत अच्छी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteहज़ारों शब्दों से उसकी प्रतीक्षा
ReplyDeleteऔर कामना कर सकूं-
Sundar...
प्रेममय कविता साझा करने के लिए बहुत आभार !
ReplyDeleteकल 31/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रेम बयान करने के लिए कितनी ही भाषा हो कितने ही शब्द हों कम पढ़ जातें हैं /बहुत ही प्रेममई प्रस्तुति /बधाई आपको /
ReplyDeleteplease visit my blog
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prem.......jiskii vyaakhyaa asambhav see hai....sundar rachnaa.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना |
ReplyDeleteअशोक बाजपेयी काफी खराब कवि हैं .... इस लिए उम्हे पढ़ने मे मज़ा बहुत आता है :) :)
ReplyDeleteमज़ेदार कविताएं !