Monday, November 22, 2010

क्योंकि मैं हूं

मैं आदि हूं, अंत हूं
पूज्य मैं, तिरस्कृत भी
वैश्या हूं, साध्वी भी 

पत्नी हूं
भंग नहीं हुआ 
कौमार्य जिसका 

मां हूं, बेटी हूं
बल हूं अपनी मां का 

कई औलादों के बाद भी बंजर 
विवाहिता कुंवारी हूं मैं 

जन्मदात्री, नहीं गुज़री जो
प्रजनन की क्रिया से कभी 

मैं ढाढ़स 
प्रसव पीड़ा के बाद का
पत्नी हूं, मैं पति भी
मेरे मर्द ने किया है
सृजन मेरा 

पिता की मां हूं
बहन पति की
वही है मेरा 
बहिष्कृत पुत्र भी 

मेरा सम्मान करो
क्योंकि
शर्मनाक हूं मैं
और
शानदार भी।


-Translated from 'Eleven Minutes' by Paulo Coelho

7 comments:

  1. सुन्दर अनुवाद. शुभकामनाएं

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  2. सुन्दर अनुवाद भावयुक्त

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  3. सुन्दर कविता !

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  4. बहुत सुंदर कविता। स्‍त्री के दर्द और उसकी महानता को रेखांकित करती यह कविता सच में दिल को छू गई। अच्‍छी रचना के लिए बधाई हो। आज अचानक आपके ब्‍लाग पर नजर पडी। पढकर निराशा नहीं हुई ऐसा लगा कि अचानक ही सही अच्‍छी रचना पढने मिल गई। ऐसे ही रचनाएं लिखती रहें।
    अतुल श्रीवास्‍तव, राजनांदगांव , छत्‍तीसगढ
    atulshrivastavaa.blogspot.com

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  5. Hey Boss, this is the first time I've chanced upon your Blog "उस ने कहा था" and I'm impressed, kind of hooked on to it. Lemme go through all your posts....

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