(प्रिय कवि आलोक श्रीवास्तव के कविता-संग्रह 'दुख का देश और बुद्ध' से...)
बुद्ध का होना
एक फूल का खिलना है
हवा में महक का बिखरना
और दिशाओं में रंगों का छा जाना है
बुद्ध का होना
अपने भीतर होना है
दुख को समझते हुए जीना
पता नहीं पृथ्वी पर
कितने कदम चले बुद्ध ने
कितने वचन कहे
कितनी देशना दी
पर बुद्ध का होना
मनुष्य में बुद्ध की संभावना का होना है
दुख की सहस्र पुकारों के बीच
दुख से मुक्ति की एक वचनश्रुति का होना है
बुद्ध का होना
बुद्ध का होना
धरती का, रंगों का, ऋतुओं का
राग का होना है...
(बुद्ध की तस्वीर थाईलैंड प्रवास के दौरान अयुथ्या मठ से.)